रविवार, 2 नवंबर 2008

बिहार की बात

बिहार में एक उत्तेजना है, गुस्सा है, प्रतिशोध की भावना है। आख़िर ये सब क्यों है? क्या एक राज ठाकरे की वजह से ? क्या आज के पहले हम बिहारियों के लिए सब कुछ ठीक था ? जवाब हमेशा यही होगा कि यह सब आजादी के बाद से लगातार देश के इस हिस्से के विकास के दौर में पिछरते जाने से पैदा हुई बेकारी, भुखमरी, और गरीबी का विस्फोट है जिसमे राज ठाकरे जैसे लोगों ने बस पतीला लगा दिया है। आज भी आपके हर गांव कसबे के मुहाने, नुक्कड़ पर लोग तास खेलते, गप्प लड़ाते मिल जायेंगे। जब काम करने का वक्त होता है, ये दालान में बैठकर समय काटते है। आख़िर कौन इन्हे यहाँ तक ले आया? हाल में महाराष्ट्र और फिर बिहार में हुई हिंसा के शिकार और गुस्से में तोड़फोड़ करते लोग और विशेषकर युवा यही लोग हैं जो राज्य के कर्णधारो के वोट गणित में उलझे हुए हैं।

क्या इस आबादी का गुस्सा जायज nahin है ? क्या इसे अपना हक नहीं मिलना चाहिए ? आपकी प्रतिक्रियाओं का हमें इंतज़ार....

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