Mother Mary Comes to Me, अरुंधति राय की नयी किताब है जिसमें उनके जीवन के संस्मरण हैं। एक ऐसी किताब जिसे मैं अपनी व्यस्तताओं के बाद भी छह दिन में पढ़ गया।
किताब में अरुंधति ने अपने जीवन संघर्ष के साथ-साथ अपनी मॉ की जीवटता, उनके दृढ़ निश्चय और संघर्ष की कहानी को बड़ों साहित्यिक विपुलता के साथ साथ अपनी विशिष्ट शैली को कथा शिल्प का प्रयोग किया है।
अरुंधति लहरों के विपरीत अपनी अलहदा पहचान के लिये जानी जाती हैं चाहे वो अठारह साल की होने पर मॉ से अपने विवाद के कारण घर छोड़ने का निर्णय हो या सरदार सरोवर परियोजना के खिलाफ चल रहे संघर्ष का साथ हो या फिर दण्डकारण्य के जंगलों में नक्सलियों के साथ बिताया गया समय हो, इन सबकी जीवंत गाथा इस किताब में मिल जायेगी।
फ़िल्म मैसी साहब की अवाक हीरोइन कब ‘द इलेक्ट्रिक मून’ की पटकथा लिखने लगीं ये सब अरूंधति ने अपनी लय में लिखा है।
ये किताब अपेक्षाकृत सरल भाषा में लिखी गयी और लेखिका के अपनी मॉ से प्रेम और अफेक्शन की टुकड़ों में लिखी गयी किस्से कहानियों से भरपूर है।
लेकिन इस किताब में उनके पहले प्यार और शादी और फिर तुरंत उसके खत्म हो जाने से लेकर मैसी साहब के निर्देशक से प्रेम संबंधों पर विस्तार से लिखा गया है। लेखिका ने अपनी मॉ के साहसपूर्ण लड़ाईयों, जिनमें बेटियों को संपत्ति के अधिकार की सफल लड़ाई से लेकर कोट्टायम के जिलाधीश के तुकलगी आगेश के तहत स्कूल में खेले जाने वाले नाटक को blasphemous बताकर बंद करने के खिलाफ लड़ी गयी लड़ाई शामिल है, को इस किताब में लिखा है।
लेखिका ने अपनी मॉ के लोगों के साथ उदंडता से पेश आने और अपने बच्चों के साथ रूखे व्यवहार का भी कई बार ज़िक्र किया है। अपने जीवन के उथल पुथल, ग़रीबी और अव्यवस्थित जीवन का विवरण भी अरुंधति ने इस किताब में लिखा है । एक जगह वो लिखती हैं ‘To be absolutely alone in the world, with almost no money, made me rigid with anxiety. But the idea of returning home to Mrs. Roy was not something I even considered.’
इस किताब में कुल चालीस वृतांत हैं जिनमें अरूंधति ने अपने बचपन में पिता और मॉ के अलग होने से लेकर उनके जीवन के सभी प्रमुख घटनाओं को अंकित किया है।
कई दक़ियानूस लोग किताब पर उनकी बीड़ी पीती फ़ोटो पर बवाल मचा रहे हैं, वो किताब को पढ़ कर और उद्विग्न हो सकते हैं क्योंकि राय ने एक साहसी औरत के खुले और चुने गये जीवन शैली, उसके प्रेम पूर्ण संबंधों पर विस्तार से बात की है। कोई हिप्पोक्रैसी नही। निर्मल, साहसिक और रूचिपूर्ण लेखन।
अपनी मॉ से बेइंतिहा प्यार करने वाली लड़की, जो विवाद होने पर घर छोड़ कर झटके में चली तो जाती है लेकिन आठ साल बाद मॉ से मिलने पर उसके पास जाने लगती है, लगातार उनकी झिड़कियाँ और ताने सुनने के बाद भी उनके सिरहाने रहती है, यही इस किताब का और अरूंधति के जीवन का क्लाइमेक्स है जो उन्हें मानववादी बनाता है और आम लोगों, दमितों और पीड़ितों के अधिकारों के लिये न्यायालय तक से लड़ने भिड़ने को तैयार करता है।किताब का अंत इन पंक्तियों से
“In these pages, my mother, my hamster, shall live. She was my shelter and my storm.”