मंगलवार, 24 सितंबर 2024

टिप्पणी- यादों में चलती साइकिल / संपादन - यादवेन्द्र

 यादों में चलती साइकिल/ संपादन - यादवेन्द्र

साइकिल हम सब की यादों का हिस्सा रही है। समय के साथ इसकी उपयोगिता बदलती गई। हम सब साइकिल के साथ जुड़ी स्मृतियाँ लिख नहीं पाते हैं।ऐसे में जब यादवेन्द्र जी के सम्पादन में ये किताब आयी तो इसमें अलग अलग विधा के तैतालीस लोगों ने अपने जीवन में साइकिल के होने का निमित्त और उसके साथ से जीवन के बदलावों का शानदार चित्रण किया है। इसके लिए यादवेन्द्र जी साधुवाद के पात्र हैं जो अब भी साइकिल की यात्रायें पटना जैसे लापरवाह और उसठ शहर में अब भी धड़ल्ले से करते हैं।
ये किताब साइकिल की यादों के बरक़्स अपनी जीवन यात्रा के पहियों को घूमते देखने जैसा है। आज के इस प्रतिस्पर्धी और क्रूर समय में जब आशुतोष दुबे अपने संस्मरण में लिखते हैं “ साइकिल एक निहायत शरीफ वाहन है। टकरा कर अपना हैंडल टेढ़ा कर लेगी, मगर अगले को कुचलेगी नहीं।”, तो ये लगता है कि जैसे साइकिल बस छू कर निकल गई हो, बस यादों के एहसास में छोड़कर।
लंगड़ी साइकिल चलाने के ढेर सारे संस्मरण इस किताब में है। अपवाद को छोड़ दें तो हम सब लंगड़ी साइकिल, अर्थात् सीट और हैंडल के बीच अपने दाहिने हाथ को डालकर और बायें हाथ से हैंडल पकड़कर ही साइकिल चलाना सीखे हैं ।
यादवेन्द्र जी का ये संकलन एवं उसका संपादन लाजवाब है।
उम्मीद है जल्दी ही इसका दूसरा खण्ड भी सामने होगा।
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सुशील

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

Meri pahli aur dusari New Delhi ki yatra cycle se hi hue thi.
Pahli yatra Lt.coln. Mr.Randhawa
Ji ke netretw me 1975/76 me Bihar NCC ke dwara Patna se New Delhi and back to Patna Republic day parade me bhag lene ke liye.Aur dusri yatra cycle tour ke roop me huee thi.